OPS: कर्मचारियों की लगातार मांग और सुप्रीम कोर्ट की बात नही मान रही सरकार, 4000 रूपये पेंशन क्यों?

केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री ने एनपीएस में सुधार का उल्लेख किया परंतु पुरानी पेंशन योजना की बहाली का कोई जिक्र नहीं किया, जिससे सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी निराश हैं।

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Written by Rohit Kumar

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OPS पर सुप्रीम कोर्ट की बात नही मान रही सरकार, 4000 रूपये पेंशन क्यों?

भारतीय सरकार के हालिया केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई घोषणाओं ने सरकारी कर्मचारियों के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है। वित्त मंत्री ने नई पेंशन योजना (NPS) में संशोधनों की बात कही, परन्तु पुरानी पेंशन योजना (OPS) के पुनः स्थापन की बात नहीं की, जिससे अनेक सरकारी कर्मचारी निराश हुए हैं।

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ओपीएस बहाली की मांग

भारत सरकार ने 2004 में नई पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत की थी, जिसे अधिक लचीला और निवेश-आधारित माना जाता है। इसके विपरीत, पुरानी पेंशन योजना (OPS) में सरकार द्वारा निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है, जिसे कर्मचारियों द्वारा अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय माना जाता है। हालांकि, वित्त मंत्री की ओर से OPS की बहाली के किसी भी प्रस्ताव का उल्लेख नहीं करने से यह स्पष्ट होता है कि सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहती है।

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आलोचना और निराशा

AIDEF के महासचिव और AITUC के राष्ट्रीय सचिव, सी. श्रीकुमार का कहना है कि केंद्रीय बजट ने सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की उम्मीदों को पूरा नहीं किया है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात की आलोचना की कि आठवें वेतन आयोग के गठन जैसे मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हुई और न ही आयकर में कोई खास राहत प्रदान की गई।

सरकारी कर्मचारियों की जरूरतें और अधिकार

सरकारी नौकरियां अक्सर नौकरी की सुरक्षा और गारंटीड पेंशन लाभों के लिए आकर्षक मानी जाती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि पेंशन कोई इनाम नहीं बल्कि कर्मचारियों का मौलिक अधिकार है। इस प्रकार, इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर होती है।

निष्कर्ष

केंद्रीय बजट में पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांगों को नजरअंदाज करना और NPS में मामूली सुधारों पर जोर देना सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी कर्मचारियों की वास्तविक आवश्यकताओं और मांगों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण कितना संवेदनशील है। यह चिंता का विषय है कि जिन मुद्दों पर सरकारी कर्मचारियों को सर्वाधिक चिंता है, उन पर सरकार की नीतियां और बजटीय फैसले कम ध्यान दे रहे हैं।

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