EPS 95 Pension: विपक्ष के सांसद आए पेंशनभोगियों के समर्थन में, बोले सरकार-EPFO को पूरी करनी होगी पेंशनर्स की मांगे

ईपीएस 95 के तहत पेंशनभोगियों ने न्यूनतम पेंशन 7500 रुपए, पत्नी की मेडिकल सुविधा सहित अन्य मांगें उठाईं। जंतर मंतर पर आयोजित आंदोलन को विपक्षी सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ, जिससे उनकी मांगों को बल मिला।

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Written by Rohit Kumar

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EPS 95 Pension: विपक्ष के सांसद आए पेंशनभोगियों के समर्थन में, बोले सरकार-EPFO को पूरी करनी होगी पेंशनर्स की मांगे

देश भर के सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने EPS 95 (Employee Pension Scheme 1995) के तहत न्यूनतम पेंशन राशि को बढ़ाकर 7500 रुपए करने, उनकी पत्नियों के लिए मेडिकल सुविधाओं सहित अन्य महत्वपूर्ण मांगों को पूरा करने के लिए आवाज उठाई है। इन पेंशनभोगियों का कहना है कि वर्तमान में मिल रही 1000 रुपए की न्यूनतम पेंशन उनकी जीवन यापन की बढ़ती लागत को पूरा करने के लिए नाकाफी है।

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नई दिल्ली में जंतर मंतर पर जन आक्रोश रैली

अखिल भारतीय नेशनल एजीटेशन कमेटी के नेतृत्व में, राष्ट्रीय अध्यक्ष कमांडर अशोक राउत और राष्ट्रीय महासचिव इंजीनियर वीरेंद्र सिंह राजावत के आह्वान पर, 27 राज्यों के पेंशनभोगी 31 जुलाई को जंतर मंतर पर एकत्र हुए। इस दिन का उद्देश्य अपनी मांगों के प्रति जन जागरूकता बढ़ाना और सरकार का ध्यान खींचना था।

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विपक्षी सांसदों का समर्थन

इस विशाल धरना प्रदर्शन को विपक्षी दलों के 12 सांसदों का समर्थन मिला, जिन्होंने आयोजन स्थल पर पहुंचकर चार मुख्य मांगों—7500 रुपए न्यूनतम पेंशन, महंगाई भत्ता, पति-पत्नी की मेडिकल सुविधा, और न्यूनतम 5000 रुपए मासिक पेंशन का समर्थन किया।

सरकार के साथ आगामी चर्चा

पेंशनभोगियों ने भारत सरकार से उम्मीद जताई है कि उनकी मांगों पर गौर किया जाएगा। सरकारी अधिकारी, विशेषकर राज्यसभा और लोकसभा में, इन मुद्दों को उठाने की बात कही गई है, ताकि मिनिमम पेंशन को बढ़ाकर हायर पेंशन की घोषणा सुनिश्चित हो सके।

सामाजिक संस्थाओं की भूमिका

पेंशनर्स ने विश्वास व्यक्त किया है कि कमांडर अशोक राउत और इंजीनियर वीरेंद्र सिंह राजावत की नेतृत्व वाली टीम के अंतर्गत, सभी समस्याओं का समाधान संभव है। इस आंदोलन में उन्होंने सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों से अपनी संगठन के साथ जुड़े रहने और सक्रिय रूप से सहयोग करने की अपील की है।

इस तरह के आंदोलन न केवल पेंशनभोगियों के हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि समुदाय के रूप में उनकी आवाज़ कितनी शक्तिशाली हो सकती है, खासकर जब वह एकजुट होकर अपनी मांगों के लिए लड़ते हैं।

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