महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर EPS 95 पेंशनभोगियों की रणनीति में तेजी आई है। पेंशनर्स लगातार एकजुटता और अभियान चला रहे हैं ताकि भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव डाला जा सके। उनकी मुख्य मांग है कि न्यूनतम पेंशन को मौजूदा 1,000 रुपये से बढ़ाकर 7,500 रुपये किया जाए। इस मुद्दे को लेकर पेंशनर्स ने अपनी नाराजगी और सक्रियता दोनों ही बढ़ा दी हैं, जिससे यह चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
चुनाव से पहले पेंशनर्स की बढ़ती सक्रियता
हाल ही में हुए सर्वेक्षणों के आधार पर पेंशनर्स ने भाजपा के खिलाफ अपनी रणनीति तैयार की है। पेंशनभोगी सनत रावल ने समर्थन जताते हुए कहा कि एकता और विकास की दिशा में किए गए प्रयास सही दिशा में हैं। पेंशनर्स ने NAC (National Agitation Committee) के प्रति समर्थन व्यक्त किया, जो पेंशनभोगियों के अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत है।
चुनावी मुद्दा बनता पेंशन सुधार
राजशेखर ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की कि जो भी पार्टी ओल्ड पेंशन का मुद्दा उठाएगी, वही आगामी चुनावों में बढ़त हासिल करेगी। पेंशनर्स इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वे उन पार्टियों का समर्थन करेंगे जो उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ईमानदारी से काम करेंगी। कौशल उप्पल ने भी सरकार को चेतावनी दी कि वरिष्ठ नागरिकों के साथ हो रहा अन्याय भविष्य में मोदी सरकार के लिए घातक साबित हो सकता है।
पेंशनर्स की नाराजगी और मांगें
इस मामले पर शशि नायर ने इस बात पर चिंता जताई कि पेंशनर्स की एक उचित मांग को अब तक अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि 80 लाख पेंशनर्स में से केवल कुछ हज़ार ही सक्रिय रूप से अपनी मांगों के लिए लड़ रहे हैं। इसी के साथ विलास रामचन्द्र गोगावले ने सरकार की अनदेखी पर सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा सरकार पेंशनर्स को गंभीरता से नहीं ले रही है।
वहीं देबेश पी कानूनगो दुलु ने शीर्ष न्यायालय के आदेश के बावजूद EPFO की पारदर्शिता पर सवाल उठाया और कहा कि सरकार का रवैया पेंशनर्स के प्रति अमानवीय है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पेंशन फंड का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कर सकती है, लेकिन पेंशनर्स के पैसे वापस करने में विफल हो रही है।
निष्कर्ष
EPS 95 पेंशनभोगियों की बढ़ती सक्रियता और उनकी मांगें आगामी विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा बन सकती हैं। सरकार को पेंशनर्स की समस्याओं पर ध्यान देना होगा, नहीं तो इसका राजनीतिक प्रभाव गंभीर हो सकता है। पेंशनर्स की एकजुटता और उनके मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया चुनावी नतीजों पर बड़ा असर डाल सकती है।