EPS 95 (Employee Pension Scheme 1995) के तहत उच्च और न्यूनतम पेंशन को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। खासकर पैरा 11(3) को लेकर कई पेंशनर्स ने असंतोष व्यक्त किया है। पेंशनर्स का मानना है कि इस प्रावधान के तहत पेंशन की गणना पेंशन फंड में किए गए योगदान के अनुपात में होनी चाहिए, न कि अंतिम पेंशन योग्य वेतन के आधार पर। एक पेंशनर ने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा कि हालांकि उन्हें इस प्रावधान से लाभ होगा, फिर भी इसे सुधारने की आवश्यकता है।
न्यूनतम पेंशन पर विचार
न्यूनतम पेंशन के मुद्दे पर भी बहस जारी है। कृष्णमूर्ति शंकरन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि 7,500 रुपये की न्यूनतम पेंशन की मांग वित्त मंत्रालय द्वारा संभवतः स्वीकार नहीं की जाएगी। इसके बजाय, वे न्यूनतम 5,000 रुपये और अधिकतम 10,000 रुपये पेंशन की मांग कर रहे हैं। पेंशनर्स इस विषय पर सरकार के रवैये को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि अगर सरकार ने इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया तो इससे लाखों पेंशनर्स के लिए एक बड़ा झटका लग सकता है।
पेंशनर्स की समस्याएं
महाराष्ट्र के पुणे से पेंशनर विलास रामचन्द्र गोगावले ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मोदी सरकार को पेंशनर्स की समस्याओं की जानकारी है, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। पेंशनर्स की मांग है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले और पेंशन में आवश्यक सुधार करे, ताकि वे अपने जीवन को सम्मानपूर्वक जी सकें।
निष्कर्ष
EPS 95 के तहत पेंशनर्स की समस्याओं को हल करने के लिए एक संतुलित और न्यायसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार और पेंशन बोर्ड को पेंशनर्स की मांगों पर विचार करते हुए उनके लिए एक उचित पेंशन योजना लागू करनी चाहिए, जिससे वे वित्तीय सुरक्षा के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें।