EPS-95 पेंशनभोगी कई वर्षों से न्यूनतम पेंशन ₹7500 + DA की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांगें अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं। वर्तमान में न्यूनतम पेंशन ₹1000 है, जिसे बढ़ाने में सरकार की उदासीनता देखी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हायर पेंशन में भी देरी हो रही है। आइए समझते हैं इन समस्याओं के पीछे के प्रमुख कारण और संभावित समाधान।
1. EPS-95 पेंशनभोगियों में जागरूकता की कमी
EPS-95 पेंशनभोगियों की संख्या लगभग 78 लाख है, लेकिन अधिकांश पेंशनभोगी अपने अधिकारों और मुद्दों के प्रति जागरूक नहीं हैं। इससे आंदोलनों में उनकी भागीदारी कम हो जाती है, जिससे मुद्दा व्यापक स्तर पर नहीं उठ पाता और पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाता।
2. यूनियनों के बीच असंगठित स्थिति
सभी EPS-95 यूनियनों के बीच समन्वय और एकता की कमी है, जिससे समस्या का समाधान और कठिन हो जाता है। एकजुट होकर काम करने से ही पेंशनभोगियों के अधिकारों की लड़ाई प्रभावी तरीके से लड़ी जा सकती है।
3. कानूनी जानकारी का अभाव
अधिकांश पेंशनभोगियों और उनके संघों के नेतृत्व में कानूनी ज्ञान की कमी है। वे न्यूनतम पेंशन या हायर पेंशन मुद्दों पर EPFO और अदालत को सही कानूनी तर्क देने में असमर्थ हैं, जिससे उनके मामले कमजोर हो जाते हैं।
4. नकारात्मक धारणाएं और भ्रांतियां
विभिन्न एजेंसियाँ और सोशल मीडिया चैनल न्यूनतम पेंशन या हायर पेंशन मुद्दों के खिलाफ तर्क दे रहे हैं। इससे पेंशनभोगी और सदस्य भ्रमित हो जाते हैं और सही जानकारी के अभाव में गलत धारणाएं बना लेते हैं।
5. प्रक्रियात्मक देरी
सरकार और EPFO द्वारा प्रक्रियात्मक देरी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। हायर पेंशन PPO या मांग पत्र जारी करने में देरी से पेंशनभोगियों की समस्याएं बढ़ जाती हैं, जिससे उनका जीवनस्तर प्रभावित होता है।
6. राजनीतिक स्तर पर समर्थन की कमी
EPS-95 पेंशन मुद्दों पर राजनीतिक हस्तक्षेप और समर्थन की कमी भी एक बड़ा कारण है। राजनीतिक दलों द्वारा पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने से सरकार पर दबाव नहीं बनता कि वे जल्दी और प्रभावी निर्णय लें।
7. आर्थिक चुनौतियाँ
अधिकांश पेंशनभोगियों के पास आर्थिक संसाधनों की कमी है, जिससे वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं कर पाते। यह आर्थिक कमजोरी उन्हें अपनी आवाज उठाने से रोकती है और उनके अधिकारों से वंचित रखती है।
क्या है समाधान?
इन समस्याओं के समाधान के लिए संगठित और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। पेंशनभोगियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। यूनियनों को एकजुट होकर कानूनी लड़ाई लड़ने और सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है।