
बहुत से लोगों को लगता है कि उनकी पूरी EPF राशि रिटायरमेंट के बाद पेंशन में बदल जाएगी, लेकिन असलियत कुछ और है। दरअसल, EPF अकाउंट का एक हिस्सा ही पेंशन के रूप में ट्रांसफर किया जाता है, जिसे Employee Pension Scheme (EPS) कहा जाता है।
EPS में कैसे होता है योगदान?
हर महीने आपकी बेसिक सैलरी का 12% हिस्सा आपके EPF खाते में जाता है, और उतनी ही राशि आपके नियोक्ता (Employer) की तरफ से भी दी जाती है। हालांकि, उस 12% में से 8.33% हिस्सा EPS यानी पेंशन फंड में जमा होता है। लेकिन यह योगदान आपकी पूरी सैलरी पर नहीं होता, सरकार ने इसकी अधिकतम सीमा ₹1,250 प्रति माह तय कर दी है।
इसका मतलब है कि अगर आपकी सैलरी 15,000 रुपये से ज्यादा है, तो भी EPS में अधिकतम ₹1,250 ही जमा होंगे। बाकी का पैसा आपके EPF खाते में चला जाता है।
किन्हें नहीं मिलता EPS का फायदा
अगर आपने नौकरी सितंबर 2014 के बाद शुरू की है और आपकी बेसिक सैलरी 15,000 रुपये से ज्यादा है, तो आपको EPS पेंशन का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे कर्मचारियों के नियोक्ता का पूरा योगदान सीधे EPF खाते में चला जाता है।
पेंशन का कैलकुलेशन कैसे होता है
EPFO के नियमों के अनुसार, पेंशन की गणना इस फॉर्मूले से की जाती है:
Pension = (औसत मासिक सैलरी × सर्विस के साल) ÷ 70
जहां औसत सैलरी आपके आख़िरी 60 महीनों की होती है।
उदाहरण के लिए, अगर आपकी औसत सैलरी ₹15,000 है और आपने 30 साल की सेवा की है,
तो आपकी मासिक पेंशन होगी —
(15,000 × 30) ÷ 70 = ₹6,428 प्रति माह (लगभग)
कितनी न्यूनतम और अधिकतम पेंशन मिल सकती है
EPS स्कीम के तहत न्यूनतम पेंशन ₹1,000 प्रति माह तय है, वहीं अधिकतम सीमा ₹75,000 प्रति माह तक जा सकती है, जो आपके सैलरी स्ट्रक्चर और सर्विस अवधि पर निर्भर करती है।
EPF की रकम कहां जाती है
EPF की कुल राशि दो हिस्सों में बंटती है:
- EPF अकाउंट: जिसमें आपकी रिटायरमेंट सेविंग होती है, जिसे आप निकाल सकते हैं।
- EPS अकाउंट: जिसमें पेंशन के लिए योगदान जमा होता है, जिसे मासिक पेंशन के रूप में दिया जाता है।
रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए जरूरी समझ
EPF सिर्फ एक बचत खाता नहीं है, बल्कि रिटायरमेंट के बाद आपकी वित्तीय सुरक्षा का आधार है। अगर आप यह समझ जाएं कि EPS से कितनी पेंशन बनेगी, तो आप बाकी बचत की योजना और बेहतर बना सकते हैं।
इसलिए नौकरीपेशा लोगों को सलाह दी जाती है कि वे समय-समय पर अपना EPF और EPS बैलेंस चेक करें, ताकि रिटायरमेंट के समय किसी अनजान कमी का सामना न करना पड़े।