कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (EPS 1995) की न्यूनतम पेंशन को लेकर देशभर में पेंशनभोगियों का विरोध तेज हो गया है। आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बनता जा रहा है। पेंशनभोगी संगठनों ने चुनावी राज्यों में अपनी आवाज़ को बुलंद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर दबाव बनाने की योजना तैयार की है।
चुनावी समीकरण और पेंशनर्स का दबाव
हाल ही में किए गए एक जनमत सर्वेक्षण ने भाजपा के लिए महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में गंभीर चुनौतियों की भविष्यवाणी की है। पेंशनभोगियों के प्रमुख नेता कमांडर अशोक राउत और उनकी टीम ने इसे अपने संघर्ष का परिणाम बताया है। महाराष्ट्र में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। खासकर, एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने पेंशनभोगियों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद की है, जिससे यह मुद्दा राजनीतिक रूप से और भी गर्म हो गया है।
पेंशनर्स का सरकार के प्रति आक्रोश
पेंशनभोगी गौतम चक्रवर्ती का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी को पेंशनभोगियों की समस्याओं को जल्द हल करना चाहिए, वरना देश की जनता उन्हें हटाकर राहुल गांधी जैसे नेताओं को सत्ता सौंपने में संकोच नहीं करेगी। पेंशनभोगी खुलकर अपने असंतोष का इजहार कर रहे हैं, और सरकार से त्वरित समाधान की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के प्रति असंवेदनशील रुख अपनाया है, और EPS 95 पेंशनभोगियों को देश पर बोझ समझा जा रहा है।
राजनीतिक समर्थन
पेंशनभोगियों की ओर से उठाई गई आवाज़ को कई राजनीतिक नेताओं का समर्थन मिल रहा है। सुप्रिया सुले जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर इसे एक महत्वपूर्ण चुनावी विषय बना दिया है। इसके साथ ही, पेंशनभोगी नेताओं ने भी अपने संघर्ष को और तेज़ कर दिया है, ताकि सरकार उनके मुद्दों को हल करने के लिए मजबूर हो।
निष्कर्ष
कर्मचारी पेंशन योजना 1995 की न्यूनतम पेंशन का मुद्दा अब सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं रहा, बल्कि यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। आने वाले चुनावों में यह देखने लायक होगा कि कैसे पेंशनभोगियों का यह आंदोलन सरकार की नीतियों और चुनावी समीकरणों को प्रभावित करता है।