भारत में करोड़ों सेवानिवृत्त कर्मचारी अपनी सेवा के वर्षों बाद जब पेंशन पर निर्भर होते हैं, तब उन्हें उम्मीद होती है कि सरकार उनकी आर्थिक और स्वास्थ्य ज़रूरतों का सम्मानपूर्वक ध्यान रखेगी। लेकिन आज देशभर से जो आवाज़ें उठ रही हैं, वो एक गहरी नाराज़गी और असंतोष को उजागर करती हैं। खासकर EPS-95 पेंशन योजना के अंतर्गत आने वाले पेंशनर्स की हालत चिंताजनक है।

1. न्यूनतम पेंशन – आज के जीवन स्तर से बहुत पीछे
EPS-95 पेंशन योजना के तहत पेंशन की न्यूनतम राशि कई मामलों में ₹1,000 या उससे कुछ अधिक है। इतने कम पैसों में कोई व्यक्ति न तो रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी कर सकता है, न ही दवाइयों जैसी अनिवार्य चीज़ें खरीद सकता है। पेंशनर्स लंबे समय से ₹7,500 न्यूनतम पेंशन + महंगाई भत्ता (DA) की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर ठोस अमल नहीं हुआ है।
2. चिकित्सा सुविधाओं की घोर कमी
हृदय रोग, मधुमेह, अस्थमा जैसी बीमारियाँ वृद्धावस्था में आम हैं, और इनकी दवाइयाँ प्रतिदिन लेनी पड़ती हैं। लेकिन ज़्यादातर पेंशनर्स को किसी भी तरह की नि:शुल्क दवा या चिकित्सा सुविधा नहीं दी जाती। कुछ का तर्क है कि अगर सरकार आयुष्मान भारत जैसी योजनाएँ चला सकती है, तो पेंशनर्स के लिए अलग से स्वास्थ्य कार्ड या चिकित्सा कोष क्यों नहीं?
3. दस्तावेज़ीय त्रुटियाँ और उनकी कीमत
कई पेंशनर्स ने बताया है कि EPFO रिकॉर्ड में जन्म तिथि या सेवा अवधि गलत दर्ज होने के कारण उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है। शिकायतों के बावजूद ये त्रुटियाँ सालों तक ठीक नहीं होतीं, और पेंशनर्स को अनावश्यक कानूनी व प्रशासनिक झंझटों से गुजरना पड़ता है।
4. EPFO की कार्यप्रणाली से असंतोष
ईपीएफ दावे (PF Claims), फैमिली पेंशन, या रिवीजन से जुड़ी फाइलें महीनों तक “Under Process” रहती हैं। न कॉल रिस्पॉन्स, न ट्रैकिंग का ठोस तरीका — ऐसे में वृद्ध व्यक्ति अपने ही पैसों के लिए इधर-उधर भटकते हैं।
5. सत्ता से मोहभंग
जब विधायकों, सांसदों को कई पेंशनें मिलती हैं और उन्हें हर सुविधा मिलती है, तो एक साधारण कर्मचारी को सम्मानजनक पेंशन क्यों नहीं मिलती? यह सवाल पेंशनर्स को अंदर से झकझोरता है। कई ने तो चुनाव बहिष्कार की चेतावनी तक दे डाली है।
6. न्याय के लिए आंदोलन
EPS-95 पेंशनधारक सालों से धरना, प्रदर्शन, याचिकाएं, और पत्राचार के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ठोस हल नहीं निकल रहा। कुछ ने तो न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है, तो कुछ आत्मबलिदान तक की बात कह रहे हैं — ये स्थिति अत्यंत दुखद और शर्मनाक है।
पेंशनर्स की नाराज़गी सिर्फ पैसों की नहीं है — यह सम्मान, सुनवाई और सरकार से संवेदनशीलता की माँग है। जिन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष देश की सेवा में लगा दिए, उन्हें अब एक सुरक्षित, सम्मानजनक और गरिमामय जीवन की आवश्यकता है। ये केवल नीतिगत नहीं, बल्कि नैतिक ज़िम्मेदारी भी है।