EPS-95: भारत में EPS 95 पेंशन योजना के अंतर्गत न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग लगातार चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) पर उठते सवालों के बीच, पेंशनभोगियों की ओर से निरंतर आवाज उठाई जा रही है। रामकृष्ण पिल्लई का हालिया पोस्ट, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार का बचाव किया, ने इस विवाद में नई जटिलताएं जोड़ी हैं।
धार्मिक और नैतिक आधार पर बहस
रविन्द्र कंदुकुरी के एक पोस्ट के जवाब में पिल्लई ने भगवत गीता का हवाला देते हुए कहा कि कर्म ही व्यक्ति को परिणाम देते हैं, ईश्वर नहीं। इसका अर्थ यह है कि अगर मोदी सरकार ने कोई गलती की है, तो उसके परिणाम स्वतः ही सामने आएंगे।
निजी क्षेत्र की नौकरी
ईपीएस के तहत निजी क्षेत्र की नौकरियों की अनिश्चितता को देखते हुए, सरकार ने पेंशन की व्यवस्था की है जहां कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को बराबर योगदान करना पड़ता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य बुढ़ापे में वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है, विशेष रूप से जब अधिकांश कर्मचारी अपने पीएफ को निकाल कर खर्च कर लेते हैं।
कांग्रेस और भाजपा की पेंशन नीतियां
1995 में कांग्रेस सरकार ने ईपीएस शुरू किया, जिसमें नियोक्ता के योगदान का एक हिस्सा पेंशन कोष में जाता था। 2014 में भाजपा सरकार ने न्यूनतम पेंशन 1000 रुपए से लागू किया, जिसे कांग्रेस लागू नहीं कर पाई थी।
सुझाव और नीतिगत परिवर्तन
पेंशन योग्य वेतन और वेतन की सीमा में बदलाव की मांग की गई है। नियोक्ता का योगदान 8.33% से बढ़ाकर 10% करने और सरकारी अंशदान 1.16% से बढ़ाकर 2.00% करने की सिफारिश की गई है।
चुनावी राजनीति
ईपीएस और उसके भविष्य पर चुनावी राजनीति का गहरा प्रभाव है। जीत और हार, दोनों ही राजनीतिक पार्टियों की नीतियों में बदलाव लाते हैं। इस प्रक्रिया में, पेंशनभोगियों की वास्तविक आवश्यकताओं को संतुलित करने का प्रयास जारी है।