इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें सेवानिवृत्ति लाभों से अन्यायपूर्ण वसूली के खिलाफ स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब सरकारी विभागों और बैंकों द्वारा बिना पर्याप्त नोटिस और सुनवाई के पेंशनभोगियों से लाभ वसूलने की शिकायतें बढ़ रही थीं।
विवाद का मुख्य कारण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि अक्सर बिना किसी ठोस कारण के, और कभी-कभी बिना किसी नोटिस के ही, सेवानिवृत्ति लाभों से धन वसूली की जा रही थी। इससे पेंशनधारकों पर गहरा वित्तीय और मानसिक दबाव पड़ रहा था।
निर्णायक निर्णय
इस मामले में, न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की अदालत ने सुनवाई के दौरान पुलिस आयुक्त, आगरा द्वारा दिए गए वसूली के आदेश को निरस्त कर दिया। अदालत ने जोर देकर कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार, सेवानिवृत्ति लाभों से वसूली अनुचित है और इससे सुप्रीम कोर्ट के रफीक मसीह के मामले में दिए गए फैसले का उल्लंघन होता है।
वसूली विवाद का केंद्र
मामला तब और गंभीर हो गया जब सुंदर सिंह, जो कि एक सब-इंस्पेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, उन्हें अपनी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद ग्रेच्युटी और पेंशन से लगभग 13 लाख रुपये की वसूली का सामना करना पड़ा। यह वसूली का आदेश पुलिस आयुक्त, आगरा द्वारा दिया गया था। सिंह ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
कानूनी पक्ष और अदालत का दृष्टिकोण
याचिकाकर्ता के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया कि वसूली का आदेश बिना किसी नोटिस या सुनवाई के दिया गया था, जो कि संविधान के धारा 104 का स्पष्ट उल्लंघन है। इस तर्क को स्वीकार करते हुए, अदालत ने वसूली के आदेश को रद्द कर दिया और स्पष्ट निर्देश दिया कि पुलिस आयुक्त, आगरा को नए सिरे से विचार करते समय याची को पर्याप्त सुनवाई का अवसर प्रदान करना चाहिए।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय सेवानिवृत्ति लाभों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह पेंशनभोगियों के अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अदालतें व्यक्तिगत अधिकारों और न्याय की रक्षा के लिए पूरी तरह सजग हैं।
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