NPS में बदलाव: क्या वाकई मोदी सरकार कर्मचारियों के पक्ष में है?

जब हम NPS में किए गए बदलाव और EPFO पेंशनभोगियों की स्थिति का विश्लेषण करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार की नीतियों में कई विरोधाभास हैं।

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Written by Rohit Kumar

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कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने उच्च पेंशन पात्रता के मुद्दे पर कई सर्कुलर जारी किए हैं, जो 1 सितंबर 2014 से पहले सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। हाल ही में जारी किए गए सर्कुलरों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले सेवानिवृत्त हुए थे और जिन्होंने अपने सेवानिवृत्ति से पहले पैरा 11(3) के तहत उच्च पेंशन योगदान का विकल्प चुना था, वे उच्च पेंशन के पात्र होंगे।

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हालांकि, EPFO पर आरोप है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश (पैरा 44(5)) को गलत तरीके से लागू किया है, जो केवल 1 सितंबर 2014 के बाद सेवा में बने कर्मचारियों के लिए है। इस गलतफहमी के कारण, कई योग्य सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उच्च पेंशन से वंचित कर दिया गया है।

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कर्मचारियों और नियोक्ताओं के संघों की मांग के कारण, EPFO ने उच्च पेंशन मान्यता के लिए आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि को कई बार बढ़ाया है, और नवीनतम विस्तार 3 मई 2023 तक किया गया था। EPFO की इन कार्रवाइयों ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों में चिंता पैदा कर दी है, जो महसूस करते हैं कि संगठन और सरकार उनके हितों की उचित रक्षा नहीं कर रहे हैं

NPS में बदलाव: क्या वाकई मोदी सरकार कर्मचारियों के पक्ष में है?

हाल ही में पेंशन फंड विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) ने NPS लेनदेन के लिए T+0 आधार पर निपटान की घोषणा की, जो 1 जुलाई 2024 से लागू होगा। इस निर्णय को लेकर कई लोग उत्साहित हैं, लेकिन जब हम पूरे परिदृश्य का विश्लेषण करते हैं, तो कुछ सवाल उभरते हैं, खासकर जब हम EPFO पेंशनभोगियों की स्थिति पर विचार करते हैं।

EPFO पेंशनभोगियों की स्थिति और मोदी सरकार

EPFO पेंशनभोगियों की ओर से उठाए गए मुद्दों से यह स्पष्ट होता है कि वे मोदी सरकार से खासे निराश हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने उच्च पेंशन के लिए उनके अधिकारों को जानबूझकर नजरअंदाज किया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश (para no 44(5)) को गलत तरीके से लागू करने का आरोप है, जिससे कर्मचारियों को उनके हक की पेंशन नहीं मिल रही है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, para no 44(1) केवल 1 सितंबर 2014 के बाद सेवा में बने कर्मचारियों के लिए है। लेकिन EPFO ने इसे सभी पेंशनभोगियों पर लागू कर दिया, जिससे कई पूर्व कर्मचारियों को उच्च पेंशन से वंचित होना पड़ा। यह स्पष्ट है कि इस निर्णय के पीछे गलत मंशा है, जिसे कोर्ट और संबंधित मंत्रालय दोनों को गुमराह करने के लिए अपनाया गया।

मोदी सरकार की भूमिका

मोदी सरकार पर आरोप है कि वह EPFO के इन गलत निर्णयों का समर्थन कर रही है। EPFO के उच्च अधिकारियों को इन प्रयासों के लिए प्रमोशन भी दिया गया, जिससे यह और स्पष्ट होता है कि सरकार इन प्रयासों का समर्थन कर रही है। पेंशनभोगियों का कहना है कि सरकार अपने उच्च अधिकारियों को प्रमोशन देकर गलत निर्णयों को बढ़ावा दे रही है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों के हितों की अनदेखी हो रही है।

NPS में बदलाव: एक सकारात्मक पहल?

जबकि NPS में T+0 निपटान का बदलाव निवेशकों के लिए एक सकारात्मक कदम है, यह सवाल उठता है कि क्या यह बदलाव सरकार की वास्तविक नीतियों का प्रतिनिधित्व करता है। EPFO पेंशनभोगियों की नाराजगी को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सरकार की नीतियों में कुछ गंभीर खामियां हैं, जिन्हें तुरंत सुधारने की आवश्यकता है।

जब हम NPS में किए गए बदलाव और EPFO पेंशनभोगियों की स्थिति का विश्लेषण करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार की नीतियों में कई विरोधाभास हैं। जहां एक तरफ NPS में किए गए बदलाव को निवेशकों के लिए फायदेमंद माना जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ EPFO पेंशनभोगियों के प्रति सरकार की उदासीनता उनके विश्वास को कमजोर करती है।

यह समय है कि सरकार सभी पेंशनभोगियों के हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए और उनकी समस्याओं का समाधान करें। वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सरकार की जिम्मेदारी है कि वे उनके अधिकारों की रक्षा करें और उन्हें उनके हक की पेंशन दिलाने में मदद करें।

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