
EPFO यानी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने हाल ही में हजारों पेंशनर्स को नोटिस जारी कर दिया है, जिसमें उन्हें 1 सितंबर 2014 के बाद मिली अतिरिक्त पेंशन को लौटाने के लिए कहा गया है। यह नोटिस उन पेंशनर्स को भेजा गया है जिन्होंने रिटायरमेंट के समय उच्च पेंशन का विकल्प चुना था और उन्हें अंतिम 12 महीनों की औसत सैलरी के आधार पर पेंशन दी गई थी। अब EPFO सुप्रीम कोर्ट के 4 नवंबर 2022 के निर्णय के आधार पर इन भुगतानों को अनुचित मानते हुए 1 लाख से 4 लाख रुपये तक की राशि की वापसी की मांग कर रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने बदली पेंशन की गणना का तरीका
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, पेंशन की गणना अंतिम 12 महीनों की बजाय अंतिम 60 महीनों की औसत सैलरी पर की जानी चाहिए। EPFO ने इस आधार पर पाया कि कई पेंशनर्स को गलत फॉर्मूले से ज्यादा पेंशन मिली है। 2014 में EPFO ने एक संशोधन लाकर यह बदलाव किया था, लेकिन इस पर कानूनी विवाद चलते रहे। कोर्ट के आदेश के बाद अब संगठन सक्रिय होकर उन पेंशनर्स से पैसे वापस मांग रहा है जो नियम के विरुद्ध लाभ ले चुके हैं।
मासिक पेंशन रोके जाने से और बढ़ी पेंशनर्स की चिंता
नोटिस में यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया गया, तो उनकी मासिक पेंशन रोक दी जाएगी। इस कारण कई पेंशनर्स, विशेषकर वे जो पूरी तरह पेंशन पर निर्भर हैं, गहरे मानसिक और आर्थिक तनाव में आ गए हैं। कुछ पेंशनर्स का यह भी आरोप है कि बिना पूर्व जानकारी के ही पिछले दो महीनों से उनकी पेंशन रोकी जा चुकी है।
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कानूनी लड़ाई और EPFO की भूमिका पर उठते सवाल
कुछ पेंशनर्स ने हाई कोर्ट से स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया है, लेकिन EPFO की ओर से इन आदेशों को गंभीरता से न लेने की शिकायतें सामने आई हैं। इससे कोर्ट की अवमानना जैसे गंभीर आरोप भी उठने लगे हैं। दूसरी ओर, कई पेंशनर्स सामूहिक याचिका दायर करने की तैयारी में हैं और इस फैसले को अनुचित बताते हुए न्याय की मांग कर रहे हैं।
वरिष्ठ नागरिकों पर बढ़ा आर्थिक दबाव
60 से 75 वर्ष की आयु के कई पेंशनर्स इस अतिरिक्त भुगतान की मांग से परेशान हैं। एक ओर उनकी उम्र उन्हें सीमित आर्थिक संसाधनों तक ही सीमित रखती है, दूसरी ओर EPFO की मांग ने उन्हें तनाव में डाल दिया है। इन पेंशनर्स का कहना है कि वे पहले से ही स्वास्थ्य खर्चों और महंगाई के बोझ से दबे हैं, और अब लाखों की रकम लौटाना उनके लिए संभव नहीं।
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