नई दिल्ली: हमारे देश में पेंशन की अवधारणा सिर्फ पुरानी सरकारी पेंशन तक ही सीमित रही है। 1995 के पहले, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) कोई पेंशन नहीं देता था। 1952 के आसपास या उससे पहले से स्थापित EPFO ने 1995 तक कर्मचारियों और नियोक्ताओं के अंशदान को एकत्र कर सेवानिवृत्ति पर ब्याज सहित लौटाकर कर्मचारियों को अपेक्षा की थी कि वे इस राशि को बैंक, पोस्ट ऑफिस आदि में जमा कर ब्याज से अपना जीवनयापन करें।
पेंशन व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता
लेकिन, समय के साथ, कई कर्मचारी सेवानिवृत्ति पर मिली एकमुश्त राशि को सही तरीके से बचा नहीं पाए और उन्हें वृद्धावस्था में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, EPFO ने 1995 में एक नई पहल की, जिसमें कर्मचारियों के फंड का एक हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में जमा करने का निर्णय लिया गया। इस कदम का उद्देश्य कर्मचारियों को नियमित पेंशन प्रदान करना था।
पुरानी पेंशन योजना की मांग
हालांकि, इस नई पहल के बावजूद, कर्मचारी पुरानी सरकारी पेंशन को ही पेंशन मानते रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि EPFO ने नियोक्ता के 12% अंशदान को पूरी तरह से EPS में जमा कर पुरानी सरकारी पेंशन प्रदान की होती, तो आज लाखों कर्मचारियों का जीवन बेहतर होता। इस प्रकार की व्यवस्था से सरकार पर कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं पड़ता और कर्मचारी सरकार के प्रति आभारी रहते।
वर्तमान सरकार से अपेक्षाएं
वर्तमान में, कई कर्मचारी और उनके परिवार सरकार से पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि यदि मोदी सरकार सभी नए और पुराने ईपीएफओ सदस्यों से नियोक्ता का संपूर्ण अंशदान लेकर पुरानी सरकारी पेंशन देने की घोषणा करती है, तो यह लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाएगा। यह कदम सरकार पर वित्तीय भार भी नहीं डालेगा और मोदी जी के प्रति जनता की आस्था और बढ़ेगी।
पुरानी पेंशन योजना की वापसी की मांग को लेकर कर्मचारी समुदाय में भारी समर्थन है। उनका मानना है कि सरकार इस कदम को उठाकर न केवल उनकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक मजबूत आधारशिला रखेगी। मोदी सरकार के इस दिशा में कदम उठाने से कर्मचारी समुदाय में व्यापक समर्थन और प्रशंसा मिलेगी।