पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme – OPS) को लेकर केंद्र सरकार ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि वह कर्मचारियों के लिए इसे फिर से लागू करने का विचार नहीं कर रही है। यह घोषणा कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा लोकसभा में दिए गए एक लिखित उत्तर के दौरान की गई थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार का कर्मचारियों के लिए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर अनिवार्य करने का निर्णय अटल है।
NPS और OPS के बीच का अंतर
पुरानी पेंशन योजना, जिसे 2004 से पहले लागू किया गया था, में कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित राशि के रूप में पेंशन प्राप्त होती थी। वहीं, नई पेंशन योजना (NPS), जो 2003 में शुरू हुई, में कर्मचारी और सरकार दोनों द्वारा योगदान दिया जाता है और रिटायरमेंट पर मिलने वाली राशि निवेश के प्रदर्शन पर निर्भर करती है।
कर्मचारी संगठनों की मांग और सरकार का रुख
कई कर्मचारी संगठनों ने समय-समय पर OPS की बहाली की मांग की है, क्योंकि वे मानते हैं कि इससे उन्हें रिटायरमेंट के बाद वित्तीय सुरक्षा प्राप्त होती है। इसके विपरीत, NPS के तहत निवेश का जोखिम होता है और रिटायरमेंट के समय मिलने वाली राशि बाजार की स्थितियों पर निर्भर करती है।
सरकार का तर्क है कि NPS एक अधिक संतुलित और लचीली योजना है, जो कर्मचारियों को उनके योगदान के माध्यम से निवेश में वृद्धि का अवसर प्रदान करती है। इसके अलावा, OPS को पुनः लागू करने से सरकारी खजाने पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिसे सरकार वहन करने में असमर्थ है।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार का यह निर्णय कर्मचारी संगठनों के लिए निराशाजनक हो सकता है, लेकिन यह वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक नीतिगत सुधारों की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। सरकार इस बात पर अडिग है कि NPS वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और उत्पादक विकल्प है, जो उन्हें अधिक आत्मनिर्भर बनाती है और उन्हें उनके भविष्य के लिए अधिक नियंत्रण प्रदान करती है।