OPS: पुरानी पेंशन मामले पर इलाहबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, कानून के आधार पर निर्णय देकर अहसान नहीं करती अदालतें

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक रेलकर्मी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और उसे पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने का निर्देश दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि न्यायालय कानून के आधार पर निर्णय लेते हैं।

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Written by Rohit Kumar

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, कानून के आधार पर निर्णय देकर अहसान नहीं करती अदालतें

OPS: एक रेलकर्मी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय या अधिकरणों द्वारा दिए गए निर्णय कानून के आधार पर होते हैं, न कि किसी प्रकार के अहसान के रूप में। यह महत्वपूर्ण टिप्पणी मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने रेलकर्मी अविनाशी प्रसाद की याचिका पर की, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के एक फैसले को चुनौती दी गई थी।

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मामला और CAT का फैसला

मूल विवाद तब उत्पन्न हुआ जब केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, प्रयागराज (CAT) ने रेलकर्मी अविनाशी प्रसाद की पेंशन संबंधी याचिका खारिज कर दी। CAT ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि याची को नौकरी मिलने के लिए आभार व्यक्त करना चाहिए, क्योंकि बहुत से लोग अभी भी नौकरी के लिए अदालतों में संघर्ष कर रहे हैं। CAT ने याची की पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल किए जाने की मांग को खारिज कर दिया था।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट का हस्तक्षेप

याची अविनाशी प्रसाद ने CAT के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। याची के अधिवक्ता आलोक कुमार यादव ने तर्क दिया कि CAT का नौकरी मिल जाने के आधार पर पेंशन का लाभ न देना गलत है। उन्होंने बताया कि याची का प्रमोशन वरिष्ठता सूची के आधार पर 3 फरवरी 1990 को हुआ था, और इसी आधार पर उसे सभी सेवाजनित लाभ उसी तिथि से मिलने चाहिए थे, लेकिन कैट ने इसे स्वीकार नहीं किया।

हाई कोर्ट का निर्णय

हाई कोर्ट ने याची की दलीलों को स्वीकार करते हुए CAT के फैसले को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि न्यायालय कानून के अनुसार फैसला करता है। न्याय किसी पर कृपा नहीं है, बल्कि यह कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा का एक संवैधानिक दायित्व है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि याची को पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल किया जाए और उसे सभी लाभ दिए जाएं।

इस फैसले का महत्व

यह फैसला न केवल याची के व्यक्तिगत मामले में राहत प्रदान करता है, बल्कि यह न्यायालय की भूमिका और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के संबंध में एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नौकरी मिलना आभार की बात नहीं है, बल्कि कर्मचारियों को उनके अधिकारों और कानूनी लाभों का पूरा संरक्षण मिलना चाहिए।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा और न्यायालयों की जिम्मेदारी पर जोर देता है। यह उन कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है जो अपने वैधानिक लाभों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अदालत ने यह सुनिश्चित किया है कि न्याय, कानून के अनुसार हो और किसी प्रकार के पूर्वाग्रह या कृपा का स्थान इसमें न हो।

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