
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा फरवरी 2025 के लिए जारी आंकड़े देश के रोजगार परिदृश्य की एक चिंताजनक झलक प्रस्तुत करते हैं। संगठन के अनुसार, फरवरी महीने में केवल 7.39 लाख नए सदस्य ईपीएफओ से जुड़े, जबकि जनवरी में यह संख्या 8.23 लाख थी। यह लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट है, जो इस बात का संकेत हो सकता है कि देश में औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों के अवसर सिकुड़ रहे हैं।
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लगातार तीसरे महीने घटती सदस्यता
यह पहला मौका नहीं है जब नए सदस्यों की संख्या में गिरावट देखी गई हो। पिछले तीन महीनों से यह ट्रेंड लगातार जारी है, जो देश की आर्थिक स्थिति और रोजगार सृजन की धीमी गति की ओर इशारा करता है। ऐसे समय में जब युवा वर्ग रोजगार की तलाश में है, ईपीएफओ के ये आंकड़े सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए एक चेतावनी के समान हैं।
नेट सब्सक्रिप्शन में बढ़त, लेकिन नए जॉब्स में नहीं
हालांकि फरवरी 2025 में कुल नेट सदस्यता 16.10 लाख रही, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3.99 प्रतिशत अधिक है, पर यह वृद्धि मुख्यतः उन 13.18 लाख सदस्यों की वापसी से हुई है जो पहले संगठन से बाहर हो चुके थे। यह एक तरह से ‘री-हायरिंग’ या कर्मचारियों की वापसी को दर्शाता है, न कि नए रोजगार के अवसरों में वृद्धि को।
महिला कर्मचारियों की भागीदारी में सकारात्मक संकेत
फरवरी में 2.08 लाख नई महिला सदस्य ईपीएफओ से जुड़ीं, जो एक encouraging संकेत है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 1.26 प्रतिशत अधिक है। महिला नेट सदस्यता 3.37 लाख रही, जिसमें साल-दर-साल 9.23 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। यह साफ दर्शाता है कि महिलाएं अब तेजी से संगठित कार्यबल में प्रवेश कर रही हैं, जो एक सकारात्मक सामाजिक संकेतक है।
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युवा वर्ग की प्रमुख उपस्थिति
18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 4.27 लाख युवा पहली बार ईपीएफओ से जुड़े, जो कुल नए सदस्यों का 57.71 प्रतिशत हैं। यह दर्शाता है कि यह वर्ग नौकरी के लिए संगठित क्षेत्र का रुख कर रहा है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि कॉलेज से निकलने के तुरंत बाद युवाओं को जॉब मिल रही है, पर उनकी संख्या में आई कमी चिंता का विषय है।
राज्यवार योगदान: कुछ राज्यों की पकड़ मजबूत
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों ने कुल नेट सदस्यता में 59.75 प्रतिशत का योगदान दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि रोजगार के अवसर अभी भी इन औद्योगिक रूप से समृद्ध राज्यों में केंद्रित हैं, जबकि छोटे और विकासशील राज्यों को इस दिशा में प्रोत्साहन की जरूरत है।
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