
सरकारी नौकरी में काम करने वालों को कई तरह की सुविधाएं दी जाती हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है मेडिकल खर्च पर राहत। यह सवाल आमतौर पर पूछा जाता है कि क्या सरकारी नौकरी में मेडिकल बिल का पूरा खर्च सरकार उठाती है? इसका जवाब पूरी तरह हां या ना नहीं है, बल्कि यह सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं और कुछ शर्तों पर आधारित होता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि सरकारी कर्मचारियों को किन परिस्थितियों में चिकित्सा व्यय की पूरी प्रतिपूर्ति मिलती है और किन हालात में कुछ खर्च खुद वहन करना पड़ता है।
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CGHS योजना के तहत केंद्र सरकार की मेडिकल सुविधा
केंद्र सरकार के कर्मचारियों को मेडिकल सुविधा देने के लिए एक संगठित ढांचा बनाया गया है जिसे CGHS यानी Central Government Health Scheme कहा जाता है। यह योजना केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशनधारकों और उनके आश्रितों के लिए होती है। इस योजना के तहत अस्पताल में भर्ती से लेकर OPD इलाज तक की सुविधाएं मिलती हैं। इसके अंतर्गत सूचीबद्ध अस्पतालों में इलाज और जांच सेवाएं कैशलेस रूप में उपलब्ध कराई जाती हैं। लेकिन इस योजना में भी एक मासिक योगदान देना पड़ता है जो कर्मचारी के वेतन स्तर के अनुसार तय होता है।
नॉन-एम्पैनल्ड अस्पतालों में इलाज और भुगतान प्रक्रिया
हालांकि CGHS में सूचीबद्ध अस्पतालों में इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाती है, लेकिन यदि कोई कर्मचारी आपातकाल में किसी नॉन-एम्पैनल्ड यानी गैर-सूचीबद्ध अस्पताल में भर्ती होता है, तो उसे पहले अपने पैसे से इलाज कराना पड़ता है। इसके बाद वह अपने खर्च की रसीद और दस्तावेजों के साथ CGHS के दफ्तर में क्लेम करता है। इस क्लेम को स्वीकार करने की प्रक्रिया CGHS के दिशानिर्देशों पर आधारित होती है और पूर्ण प्रतिपूर्ति की गारंटी नहीं होती।
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राज्य सरकारों की अलग योजनाएं और उनका दायरा
जहां केंद्र सरकार के लिए CGHS लागू होता है, वहीं विभिन्न राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों के लिए अलग योजनाएं चलाती हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड सरकार ने अपने कर्मचारियों को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत इलाज की सुविधा दी है, जहां उन्हें सरकारी और सूचीबद्ध निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज और दवाइयों की सुविधा मिलती है। इस योजना के तहत OPD सेवाएं और जांच भी मुफ्त में होती हैं। हालांकि योजना की शर्तें और कवरेज अलग-अलग राज्यों में अलग हो सकती हैं।
कैशलेस बनाम प्रतिपूर्ति मॉडल
सरकारी मेडिकल योजनाओं में दो मॉडल प्रमुख होते हैं – कैशलेस और प्रतिपूर्ति। कैशलेस मॉडल में इलाज के दौरान मरीज को कोई भुगतान नहीं करना होता क्योंकि सारा खर्च सीधे सरकार वहन करती है। यह सुविधा सूचीबद्ध अस्पतालों में ही मिलती है। दूसरी ओर, प्रतिपूर्ति मॉडल में पहले कर्मचारी को भुगतान करना पड़ता है और बाद में सरकार से उसकी भरपाई के लिए आवेदन करना होता है। यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है और इसमें दस्तावेजों की जांच के बाद ही भुगतान होता है।
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