एक सैनिक की विधवा ने अपने पति के लिए 53 साल बाद न्याय प्राप्त किया। यह मामला आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (AFT) री बेंच, लखनऊ का है, जहां माननीय न्यायाधीश उमेश चंद श्रीवास्तव और वाइस एडमिरल अभय रघुनाथ कार्वे ने इस ऐतिहासिक फैसला दिया। इस केस में सैनिक की विधवा को अपने पति के लिए पेंशन और अन्य लाभ प्राप्त हुए, जो उन्हें सेना से बोर्ड आउट होने के बाद नहीं मिले थे।
केस का विवरण
सिपाही प्रेमराज, जिन्होंने 1963 में सेना में भर्ती ली थी, 1965 में बोर्ड आउट कर दिए गए थे, और उन्हें 20% की डिसेबिलिटी के साथ सेवा से हटा दिया गया था। जब उन्होंने डिसेबिलिटी पेंशन के लिए आवेदन किया, तो 1966 में इसे खारिज कर दिया गया। प्रेमराज 2006 में स्वर्गवासी हो गए, लेकिन 2019 में उनकी विधवा ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिससे 53 साल बाद उन्हें पेंशन का लाभ मिला।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने सैनिक की विधवा की याचिका को स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि उनकी पेंशन का कैलकुलेशन किया जाए और तीन महीने के भीतर भुगतान किया जाए। अगर इस समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया गया, तो 8% ब्याज के साथ पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया गया।
वकीलों की भूमिका
इस केस में वकीलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने तर्क दिया कि सैनिक को डिसेबिलिटी पेंशन मिलनी चाहिए थी, क्योंकि वह सेना में स्वस्थ होकर आए थे और सेवा के दौरान उन्हें चिकित्सा समस्या हुई थी। इस तर्क को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने सैनिक की विधवा को न्याय दिलाया।
संदेश
यह मामला उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि एक विधवा 53 साल बाद अपने पति के लिए न्याय प्राप्त कर सकती है, तो कोई भी अपने हक के लिए लड़ सकता है। यह न्यायिक निर्णय यह दर्शाता है कि सही समय पर सही कदम उठाने से न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
अगर आपके या आपके जानने वाले किसी व्यक्ति के साथ इस प्रकार की समस्या है, तो उसे यह केस जरूर बताएं और अपने हक के लिए लड़ने का साहस दें। न्याय पाने के लिए कभी भी देर नहीं होती। अगले लेख में हम आपके लिए और भी महत्वपूर्ण जानकारी लाएंगे। तब तक के लिए जय हिंद, जय भारत।