SC Decision: दूसरी पत्नी को पेंशन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने किया विशेष अधिकारों का प्रयोग, जाने पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण अधिकारों का उपयोग करते हुए दूसरी पत्नी को पेंशन देने का आदेश दिया, भले ही उसने पति की पहली पत्नी के रहते हुए शादी की थी। यह फैसला न्याय के व्यापक दृष्टिकोण और व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता को दर्शाता है।

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Written by Rohit Kumar

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SC Decision: दूसरी पत्नी को पेंशन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने किया विशेष अधिकारों का प्रयोग, जाने पूरा मामला

SC Decision: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और असाधारण निर्णय लेते हुए दूसरी पत्नी को पेंशन देने का आदेश दिया है, भले ही वह विवाह पति की पहली पत्नी के रहते हुए किया गया था। इस फैसले ने न्याय के नए आयाम स्थापित किए हैं और संवैधानिक विशेषाधिकारों के उपयोग को दर्शाया है।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक महिला का है, जिसने अपने पति की मृत्यु के बाद पेंशन के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। महिला के पति जय नारायण महाराज साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में कार्यरत थे और 2001 में उनका निधन हो गया था। उन्होंने 1983 में सेवानिवृत्ति ली थी और उनकी पहली पत्नी (राम स्वारी देवी) का निधन 1984 में हुआ था। इसके बाद, उन्होंने दूसरी शादी राधा देवी से की, पति की मृत्यु के बाद राधा देवी ने पेंशन के लिए आवेदन किया, जिसे कंपनी ने खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने भी महिला को राहत देने से इनकार कर दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए महिला को राहत दी। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने यह स्वीकार किया कि महिला का ‘पत्नी’ होने का दर्जा विवादित नहीं था। उसे केवल इस आधार पर पेंशन से वंचित किया जा रहा था कि उसने अपने पति की पहली पत्नी के रहते हुए शादी की थी।

अदालत का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद असामान्य है और पूरी तरह से न्याय करने के लिए असाधारण अधिकारों का उपयोग किया गया। अदालत ने आदेश दिया कि राधा देवी को 1 जनवरी 2010 से पारिवारिक पेंशन का भुगतान किया जाए और यह पेंशन उनकी मृत्यु तक जारी रहे। कोर्ट ने यह भी कहा कि राधा देवी को ‘पत्नी’ का दर्जा देकर पेंशन प्रदान करना उन्हें सम्मान के साथ जीवन जीने और आर्थिक रूप से स्थिर रखने के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका के असाधारण शक्तियों के उपयोग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह न केवल पेंशन पाने के अधिकार की पुष्टि करता है, बल्कि दूसरी पत्नी के अधिकारों को भी मान्यता देता है। इस फैसले ने उन मामलों में न्याय का मार्ग प्रशस्त किया है जहां सामाजिक और कानूनी धारणाएं व्यक्तिगत अधिकारों के खिलाफ खड़ी होती हैं।

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