भारत में, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के अंतर्गत आने वाली न्यूनतम पेंशन योजना (EPS) पेंशनभोगियों के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक सहारा प्रदान करती है। हालांकि, इस योजना की कमियाँ और सीमाएँ समय-समय पर पेंशनभोगियों के आंदोलन का कारण बनी हैं, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार से न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग की है।
वर्तमान पेंशन व्यवस्था की आलोचना
पेंशनर्स जैसे कि रामकृष्ण पिल्लई ने बताया है कि जहाँ एक ओर राजनेताओं को पेंशन की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, वहीं साधारण नागरिक जो निजी क्षेत्र में कार्य करते हैं, उन्हें ऐसी कोई भी सहायता प्राप्त नहीं होती। इसके अलावा, ईपीएस पेंशन का भुगतान व्यक्तिगत योगदान पर निर्भर करता है जो कि कई बार पर्याप्त नहीं होता है।
सरकारी नीति और सुधार की दिशा
ईपीएफ निजी क्षेत्र के लिए एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क प्रदान करता है, जिसमें नियोक्ता और कर्मचारी दोनों से योगदान की अपेक्षा की जाती है। सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह नियोक्ताओं से पेंशन फंड में अधिक योगदान करने के लिए कहे, साथ ही अपना योगदान भी बढ़ाए। न्यूनतम पेंशन के लिए व्यावहारिक उपायों और सब्सिडी की पेशकश कर सकती है।
सरकार के लिए सुझाव
- पेंशन योगदान सीमा में वृद्धि: सरकार को चाहिए कि वह नियोक्ताओं से पेंशन फंड में कम से कम 10% वेतन का योगदान करवाने की नीति अपनाए।
- सरकारी योगदान में वृद्धि: अपना योगदान 1.16% से बढ़ाकर कम से कम 2.00% करने का विचार करे।
- न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित करना: न्यूनतम पेंशन के लिए सब्सिडी देने पर विचार करे ताकि सभी वरिष्ठ नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो सके।
यदि ये सुझाव कार्यान्वित किए जाते हैं, तो निश्चित रूप से यह पेंशन प्रणाली में सुधार ला सकेगा और पेंशनभोगियों के जीवन में स्थायित्व प्रदान करेगा।