नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें एक मृत पूर्व सैनिक की फैमिली पेंशन में कटौती पर सवाल उठाया गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पहले इस याचिका पर विचार करने में संकोच किया था, लेकिन वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता की दलीलों के बाद पीठ ने केंद्र से जवाब मांगने का निर्णय लिया।
वकील की दलीलें
वकील निधेश गुप्ता ने अपनी दलील में कहा कि जब एक रिटायर सैनिक की कम उम्र में मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार के पालन-पोषण का पूरा बोझ उसकी विधवा पर आ जाता है, जिसकी आय का एकमात्र स्रोत पारिवारिक पेंशन होता है। उन्होंने बताया कि एक रिटायर सैनिक को अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन मिलती है। रिटायरमेंट के बाद वह दूसरी नौकरी करके पेंशन राशि की पूर्ति करता है।
वकील ने यह भी कहा कि किसी पूर्व सैनिक की कम उम्र में मृत्यु होने पर उसका परिवार उस वेतन को भी खो देता है, जो वह दूसरी नौकरी से प्राप्त कर रहा था। वर्तमान नीति के तहत, व्यक्ति की मृत्यु की स्थिति में विधवा या आश्रित बच्चों को अंतिम वेतन के 30 प्रतिशत के बराबर साधारण पारिवारिक पेंशन दी जाती है।
जनहित याचिका का मुख्य बिंदु
याचिका में कहा गया है कि पेंशन में इतनी भारी कटौती से बचे हुए परिवार के लिए जीवनयापन की बढ़ती लागत को पूरा करना बेहद मुश्किल हो जाता है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह रिट याचिका सरकार की मनमानी और अन्यायपूर्ण पेंशन नीति के खिलाफ निर्देशित है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत मृत सेवा कर्मियों की विधवाओं और आश्रित बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करती है।
पेंशनभोगियों की स्थिति
देश भर में पूर्व सैनिकों की लगभग 6.50 लाख विधवा पेंशनभोगियों में से लगभग 85% यानी लगभग 5.53 लाख जेसीओ/ओआरएस रैंक के कर्मियों की विधवाएं हैं। जनहित याचिका में यह भी बताया गया है कि औसतन एक सैनिक का अंतिम वेतन 50,000 रुपये है, जिसका मतलब है कि सशस्त्र बलों से रिटायरमेंट के बाद कम उम्र में मरने वाले पूर्व सैनिक की विधवा के लिए सामान्य पारिवारिक पेंशन लगभग 15,000 रुपये होगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से हजारों विधवाओं और आश्रित बच्चों को उम्मीद की एक किरण मिली है। केंद्र सरकार के जवाब के बाद इस मामले में और भी महत्वपूर्ण जानकारी सामने आने की संभावना है।
यह मामला न केवल सैन्य कर्मियों की विधवाओं और आश्रितों की वित्तीय सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह सरकार की पेंशन नीति की न्यायसंगतता और संवेदनशीलता पर भी सवाल उठाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब सभी की नजरें केंद्र सरकार के जवाब पर टिकी हैं।