
गुजरात के अहमदाबाद में एक निजी कर्मचारी के पीएफ (Provident Fund) के लिए हुई 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई ने अब एक निर्णायक मोड़ लिया है। अहमदाबाद की सिविल कोर्ट ने इस विवाद का निपटारा करते हुए मृतक कर्मचारी के परिवार को 21 साल बाद 10 लाख रुपये से अधिक की पीएफ राशि देने का आदेश दिया है। यह मामला 2004 का है, जब सुरेशचंद्र नामक एक निजी कंपनी के कर्मचारी की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पीएफ राशि पर उनकी दो पत्नियों के बीच विवाद शुरू हो गया, जो इस कानूनी लड़ाई की जड़ बनी।
शुरुआत में हुआ विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब सुरेशचंद्र की मई 2004 में मृत्यु हो गई और उन्होंने कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी। इसके कारण उनके परिवार को उनकी संपत्ति और पीएफ की राशि पर कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं मिल सका। 2009 में सुरेशचंद्र की पहली पत्नी, वर्षा को ईपीएफओ (EPFO) से एक पत्र मिला, जिसमें बताया गया था कि सुरेशचंद्र की दूसरी पत्नी, हिनारानी ने उनकी पीएफ राशि का दावा किया था। वर्षा ने इसका विरोध किया और इसके बाद ईपीएफओ ने उन्हें उत्तराधिकार प्रमाणपत्र हासिल करने का निर्देश दिया।
सिविल कोर्ट का पहला आदेश
2010 में अहमदाबाद की सिविल कोर्ट ने वर्षा के पक्ष में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी कर दिया। हालांकि, हिनारानी और सुरेशचंद्र की दूसरी पत्नी के रिश्तेदार विलासपति ने इस फैसले को चुनौती दी और दावा किया कि वे सुरेशचंद्र के वैध उत्तराधिकारी हैं। उनके अनुसार, वर्षा और विक्रांत ने इस मामले में गलत जानकारी दी थी और उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए लंबित मुकदमे को छिपाया था। इस पर 2016 में यह मामला गुजरात हाईकोर्ट पहुंचा।
हाईकोर्ट का निर्णय और मामला और जटिल हुआ
गुजरात हाईकोर्ट ने 2017 में इस मामले पर सुनवाई की और सिविल कोर्ट द्वारा जारी उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया। कोर्ट ने दोनों पक्षों को फिर से सुनने का आदेश दिया और सिविल कोर्ट को इस पर नया फैसला लेने को कहा। इसके बाद, मामला और जटिल हो गया क्योंकि विलासपति ने अदालत में अपनी आपत्ति दर्ज कराई। लेकिन 2022 में विलासपति की मृत्यु हो गई, और उनका कोई वारिस भी नहीं था। इस स्थिति में, अदालत ने वर्षा और विक्रांत के आवेदन को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि उन्हें पीएफ राशि का भुगतान किया जाए।
अहमदाबाद सिविल कोर्ट का अंतिम आदेश
हाल ही में, अहमदाबाद सिटी सिविल और सेशंस कोर्ट ने इस मामले का अंतिम निर्णय सुनाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि सुरेशचंद्र की पत्नी वर्षा और उनके बेटे विक्रांत को पीएफ की राशि दी जाएगी, जिसमें अर्जित ब्याज भी शामिल होगा। कुल मिलाकर, यह राशि 10 लाख रुपये से अधिक होगी। यह आदेश सुरेशचंद्र के परिवार के लिए राहत लेकर आया, क्योंकि 21 साल बाद यह विवाद समाप्त हुआ। इस मामले ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि परिवारों के बीच संपत्ति और धन के मुद्दे पर विवाद कितने जटिल हो सकते हैं और कोर्ट को कितनी सावधानी से निर्णय लेना पड़ता है।
इस मामले से जुड़ी कानूनी पहलु
इस मामले ने कई कानूनी पहलुओं को उजागर किया है। सबसे पहले, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र का महत्व सामने आया। बिना किसी वसीयत के, जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यह तय करना कठिन हो जाता है कि उसकी संपत्ति का हकदार कौन है। इस मामले में, अदालत ने सही निर्णय लेने के लिए दोनों पक्षों की सुनवाई की और यह सुनिश्चित किया कि पीएफ राशि का वितरण कानूनी तरीके से किया जाए। इसके अलावा, यह भी साबित हुआ कि जब परिवारों के बीच संपत्ति और धन को लेकर विवाद हो, तो मामला अदालत तक पहुंच सकता है, और इसमें समय और संसाधन दोनों की काफी आवश्यकता होती है।
कानूनी जटिलताओं का सामना
यह मामला यह दिखाता है कि कानूनी प्रक्रिया में कैसे समय लग सकता है, विशेषकर जब दावे विवादित होते हैं। इस मामले में 15 साल से अधिक समय तक चलने वाली कानूनी लड़ाई ने यह सिद्ध किया कि अदालत को हर पहलू को ध्यान में रखते हुए फैसला लेना पड़ता है। अपील, नई सुनवाई, और समयबद्ध आदेशों ने इसे जटिल बना दिया था, लेकिन अंत में अदालत ने सही निर्णय दिया। यह मामला एक संकेत है कि इस तरह के मामलों में वसीयत और कानूनी दस्तावेजों का महत्व कितना अधिक होता है, ताकि बाद में ऐसे विवादों से बचा जा सके।