
मध्य प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आठ साल से रुकी पड़ी पदोन्नति प्रक्रिया को पुनः शुरू करने की घोषणा की है। यह निर्णय राज्य के प्रशासनिक ढांचे और कर्मचारियों के भविष्य को नई दिशा देगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 8 अप्रैल 2025 को कैबिनेट बैठक के बाद वीडियो संदेश में यह महत्वपूर्ण घोषणा की। यह फैसला चार लाख से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों को सीधा लाभ पहुंचाएगा, जिनका वर्षों से इंतजार अब समाप्त हो गया है।
पदोन्नति में मेरिट और वरिष्ठता का होगा आधार
पदोन्नति-प्रक्रिया को दोबारा शुरू करते हुए सरकार ने स्पष्ट किया है कि अब मेरिट और वरिष्ठता दोनों को ही आधार बनाया जाएगा। 1 अप्रैल 2025 से पदोन्नत कर्मचारियों को आर्थिक लाभ मिलने की संभावना है। सभी विभागों को कैबिनेट निर्णय के बाद तत्काल डीपीसी (विभागीय पदोन्नति समिति) की बैठक बुलाने और आदेश जारी करने के निर्देश दिए गए हैं।
कार्यवाहक पदों पर अस्थायी रूप से नियुक्त कर्मचारियों की पुनः डीपीसी के जरिए समीक्षा होगी, जिससे वे भी उच्च पद के आर्थिक लाभ के पात्र बन सकें। विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के वे कर्मचारी जो 2002 में पदोन्नत हुए थे, उन्हें अब पदावनति का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह फैसला कर्मचारियों के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम है।
आरक्षण विवाद बना था रोड़ा
पिछले कई वर्षों से पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा न्यायालय में उलझा हुआ था। वर्ष 2016 में निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने पदोन्नति नियम 2002 को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने इन नियमों को निरस्त कर दिया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के चलते मई 2016 से पदोन्नति की प्रक्रिया रुक गई।
इस अवधि में एक लाख से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए, जिससे कर्मचारी वर्ग में असंतोष व्याप्त हो गया था। अब सरकार ने इस जटिल स्थिति से निपटने के लिए वैकल्पिक समाधान निकालते हुए पदोन्नति की प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू करने का निर्णय लिया है।
पूर्ववर्ती सरकार की कोशिशें और असफलता
तत्कालीन शिवराज सरकार ने भी इस मुद्दे का समाधान निकालने की कोशिश की थी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला से नए नियम बनवाए थे। बाद में तत्कालीन गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई, जिसने कर्मचारी संगठनों से बातचीत की, परंतु कोई ठोस सहमति नहीं बन सकी। उस समय पात्र कर्मचारियों को केवल कार्यवाहक पदों का प्रभार दिया गया, जो स्थायी समाधान नहीं था और इससे असंतोष और भी गहराया।
विधि विभाग ने दिखाई राह
इस लंबे गतिरोध के समाधान में विधि एवं विधायी विभाग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विभाग ने हाई कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यद्यपि आरक्षण नियम निरस्त हो गए हैं, परंतु विभागीय भर्ती नियमों में अब भी वरिष्ठता आधारित पदोन्नति का प्रावधान मौजूद है। इसी आधार पर भर्ती नियम 2010 के तहत पदोन्नति प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी।
मुख्यमंत्री का भरोसा और कर्मचारियों की उम्मीदें
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने संदेश में कहा कि वर्षों से अटकी पड़ी पदोन्नति की प्रक्रिया को अब स्पष्ट दिशा मिली है। उन्होंने कहा, “कई कर्मचारी बिना हक पाए ही रिटायर हो गए। एक ही सीट पर वर्षों तक कार्यरत रहना किसी के लिए भी अन्याय जैसा है। हमने सभी वर्गों से संवाद कर सहमति प्राप्त की है। अब सभी कर्मचारियों को उनका हक मिलेगा।”
यह संदेश कर्मचारियों के लिए न सिर्फ राहत की खबर है, बल्कि यह भरोसे की एक नई शुरुआत भी है।
राज्य में कितने कर्मचारी होंगे लाभान्वित
मार्च 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में प्रथम श्रेणी के 8,286, द्वितीय श्रेणी के 40,020, तृतीय श्रेणी के 5,00,048 और चतुर्थ श्रेणी के 58,522 नियमित कर्मचारी हैं। नई भर्तियों को जोड़कर यह संख्या सात लाख से अधिक हो चुकी है। इसमें से चार लाख से अधिक कर्मचारी पदोन्नति से लाभान्वित होंगे, जिससे न केवल प्रशासनिक कार्यक्षमता में सुधार आएगा, बल्कि कर्मचारियों का मनोबल भी बढ़ेगा।