
EPS-95 (Employees’ Pension Scheme, 1995) एक ऐसी पेंशन योजना है, जिसे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था। लेकिन इसके क्रियान्वयन और सुधार को लेकर बीते कई वर्षों से विवाद और बहस चल रही है। पेंशनभोगियों की बढ़ती नाराजगी और उनके मुद्दों पर सरकारों का रवैया हमेशा सवालों के घेरे में रहा है।
हाल ही में, पेंशनभोगी श्री अनिल कुमार नामदेव ने सोशल मीडिया पर इस मामले पर अपनी राय रखते हुए बताया कि यह विषय कितना अहम है। उनके विचार हर पेंशनभोगी के लिए जानना जरूरी हैं। उन्होंने EPS-95 की खामियों, सरकारों की उदासीनता और इसके सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
EPS-95 योजना और कांग्रेस सरकार की भूमिका
EPS-95 योजना 1995 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में लागू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था सेवानिवृत्त कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना। यह योजना कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के तहत संचालित होती है, जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों का योगदान होता है।
हालांकि, शुरुआत से ही इस योजना में कई खामियां रहीं, जैसे:
- न्यूनतम पेंशन की अपर्याप्त राशि।
- महंगाई के अनुसार पेंशन वृद्धि का कोई प्रावधान नहीं।
- पेंशनभोगियों की स्वास्थ्य और अन्य जरूरतों को नजरअंदाज करना।
श्री नामदेव के अनुसार, ये कमियां योजना के उद्देश्य को कमजोर करती हैं।
क्या केवल कांग्रेस जिम्मेदार है?
नामदेव जी ने स्पष्ट किया कि EPS-95 की खामियों के लिए केवल कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराना सही नहीं है। यह सच है कि योजना कांग्रेस के समय बनाई गई थी, लेकिन इसके सुधार और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए बाद की सरकारें भी जिम्मेदार हैं।
उन्होंने कहा कि पेंशनभोगी हर सरकार से न्याय की उम्मीद करते रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया।
भाजपा सरकार पर सवाल
पिछले 10 वर्षों से पेंशनभोगी भाजपा सरकार से इस योजना में सुधार की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद, पेंशनभोगियों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद, श्रम मंत्रालय और EPFO ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई।
नामदेव जी ने सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर धारा 370 जैसे बड़े बदलाव किए जा सकते हैं, तो EPS-95 जैसी योजना में सुधार क्यों नहीं हो सकता?
सर्वोच्च न्यायालय और सरकार का रवैया
पेंशनभोगियों ने न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय दिए, लेकिन EPFO और श्रम मंत्रालय की उदासीनता ने इन फैसलों को लागू करने में बाधा डाली।
नामदेव जी ने सरकारों की सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह सांसदों और मंत्रियों के वेतन-भत्तों और पेंशन पर तुरंत निर्णय लिए जाते हैं, उसी तरह पेंशनभोगियों के हक में भी त्वरित फैसले होने चाहिए।